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लोकगीत
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आजकल का नया ज़माना

दादरा


आजकल का नया ज़माना सास को बहु सिखलाती है

सास बेचारी रोटी बनाये बहु देखन को जाती है
सासु रोटी अच्छी सेकना रोटी कच्ची रहती है

सास बेचारी बरतन मांजे बहु देखन को जाती है
सासु बरतन अच्छे धोना बरतन झूठे रहते है

सास बेचारी कपड़े धोये बहु देखन को जाती है
सासु कपड़े अच्छे धोना कपड़े मैले रहते है

आजकल का नया ज़माना सास को बहु सिखलाती है ।








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